आज के इस post में आप सभी के लिए Class 12 PSYCHOLOGY का subjective Question Paper -2यानि Question Bank 2021 (subjective Question), (Short Question ) (Long Question ) PSYCHOLOGY Question Paper 2021 Class 12 pdf With Answer In Hindi Medium Class 12 PSYCHOLOGY Sample Paper 2021 – 22 in Hindi Pdf Download
प्रश्न 1. बुद्धि और अभिक्षमता में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-बुद्धि का आशय पर्यावरण को समझने, सविवेक चिंतन करने तथा किसी चुनौती के सामने होने पर उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की व्यापक क्षमता से है। बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति की व्यापक सामान्य संज्ञानात्मक सक्षमता तथा विद्यालयीय शिक्षा से लाभ उठाने की योग्यता का ज्ञान होता है। सामान्यतया कम बुद्धि रखने वाले विद्यार्थी विद्यालय की परीक्षाओं में उतना अच्छा निष्पादन करने की संभावना नहीं रखते परंतु जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनकी सफलता की प्राप्ति का संबंध मात्र बुद्धि परीक्षणों पर उनके प्राप्तांकों से नहीं होता। | अभिक्षमता-इसका अर्थ किसी व्यक्ति की कौशलों के अर्जन के लिए
अंतर्निहित संभाव्यता से है। अभिक्षमता परीक्षणों का उपयोग यह पूर्वकथन करने में किया जाता है कि व्यक्ति उपयुक्त पर्यावरण और प्रशिक्षण प्रदान करने पर कैसा निष्पादन कर सकेगा । एक उच्च यांत्रिक अभिक्षमता वाला व्यक्ति उपयुक्त प्रशिक्षण का अधिक लाभ उठाकर एक अभियंता के रूप में अच्छा कार्य कर सधकता है । इसी प्रकार भाषा की उच्च अभिक्षमता वाले एक व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर एक अच्छा लेखक बनाया जा सकता है।
प्रश्न 2. अंतर्मुखी तथा बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रकार में अंतर बताइए
उत्तर-युग ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण व्यवहार की प्रवृत्तियों के आधा पर दो प्रकारों से किया इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों के अलग-अला विशेषताएँ एवं गुण हैं, जो निम्नांकित हैं-युग के अनुसार अन्तर्मुखी प्रकार व व्यक्ति एकांत प्रिय एवं आदर्शवादी विचारों के होते हैं, जबकि बहिर्मुखी प्रका के व्यक्ति समाजप्रिय एवं यथार्थवादी विचारों के होते हैं।
दूसरा अंतर यह है कि अन्तर्मुखी व्यक्ति आत्मगत दृष्टिकोण वाले हात हैं लेकिन व्यवहार कुशल नहीं होते हैं। जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति वस्तुगत दृष्टिकोण वाले होते हैं लेकिन व्यवहार कुशल होते हैं।
तीसरा अंतर यह होता है कि अन्तर्मुखी व्यक्ति कल्पनाशील होते हैं। ये वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक आदि होते हैं जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति सामाजिक कार्यों में रूची लेते हैं, अतः ये नेता, समाजसुधारक सामाजिक कार्यकर्ता आदि होते हैं।
प्रश्न 3. दबाव के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए । दैनिक जीवन से उदाहरण दीजिए।
उत्तर-दबाव का वर्णन किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जाने वाली अनुक्रियाओं के प्रतिरूप के रूप में किया जा सकता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामने करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है। उदाहरण के लिए, किसी चुनौती के सामने होने पर हम अधिक प्रयास करते हैं तथा चुनौती से निपटने के लिए अपने सारे संसाधनों
और अवलम्ब व्यवस्था को भी संघटित कर देते हैं। सभी चुनौतियाँ, समस्याएँ तथा कठिन परिस्थितियाँ हमें दबाव में डालती हैं। दबाव विद्युत की भाँति होते हैं। दबाव ऊर्जा प्रदान करते हैं। मानव भाव-प्रबोधन में वृद्धि करते हैं तथा निष्पादन को प्रभावित करते हैं। तथापि, यदि विद्युत धारा अत्यन्त तीव्र हो तो वह बल्ब की बत्ती को गला सकती है। विद्युत उपकरणों को खराब कर सकती है। ठीक इस प्रकार यदि दबाव का ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया है तो वह जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
प्रश्न 4. तनाव स्वास्थ्य को किस ढंग से प्रभावित करता है?
उत्तर-तनाव कई प्रकार के होते हैं, जिससे व्यक्ति को प्रतिदिन सामना करना पड़ता है। इन सभी तनावों को उनके क्षेत्र के आधार पर तीन मुख्य प्रकारों में बाँटा जा सकता है-पर्यावरणीय तनाव, सामाजिक तनाव तथा मनोवैज्ञानिक तनाव। पर्यावरणीय तनाव पर्यावरणीय विसंतुलन से उत्पन्न होता है, जैसे बाढ़, आग, भूकंप आदि से उत्पन्न तनाव । सामाजिक तनाव से तात्पर्य एक-दूसरे के साथ अंत:क्रिया से उत्पन्न तनाव से होता है। जैसे परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु या बीमारी, विवाह-विच्छेद, अलगाव, पड़ोसियों से अनबन आदि से उत्पन्न तनाव । मनोवैज्ञानिक तनाव से तात्पर्य मन द्वारा उत्पन्न तनाव से होता है, जैसे-कुण्ठा, द्वंद्व तथा दबाव आदि मनोवैज्ञानिक तनाव के प्रमुख स्रोत हैं।
प्रश्न 5. मनोचिकित्साओं के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर-मनोचिकित्साओं के उद्देश्य निम्न लक्ष्यों में से होते हैं-0 सेवार्थी के सुधार के संकल्प को प्रबलित करना । (ii) संवेगात्मक दबाव को कम करना । (iii) सकारात्मक विकास के लिए संभाव्यताओं को प्रकट करना । (iv) आदतों में संशोधन करना । (v) चिंतन के प्रतिरूपों में परिवर्तन करना। (vi) आत्म-जागरूकता को बढ़ावा । (vii) अंतर्वैयक्तिक संबंधों एवं संप्रेषण में सुधार करना । (viii) निर्णयन को सुकर बनाना । (ix) जीवन में अपने विकल्पों के प्रति जागरूक होना । (x) अपने सामाजिक पर्यावरण के एक सर्जनात्मक एवं आत्म-जागरूक तरीके से संबंधित होना। ___ प्रश्न 6. शाब्दिक बुद्धि परीक्षण तथा अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-शाब्दिक बुद्धि परीक्षणों में परीक्षार्थी को मौखिक अथवा लिखित में शाब्दिक अनुक्रियाएँ करनी होकती है। इसलिए शाब्दिक परीक्षा केवल साक्षर व्यक्तियों को ही दिया जा सकता है।
प्रश्न 6.शाब्दिक परीक्षणों में एकांशों के रूप में चित्रों अथवा चित्रनिरुपणों का उपयोग किया जाता है।
उत्तर-शाब्दिक परीक्षणों का एक उदाहरण रैवेंस प्रोग्रेसिव मैट्रिसेस (आर. पी. एम.) है जिसमें परीक्षार्थी को एक अपूर्ण प्रतिरूप दिखाया जाता है और उसे दिए गये अनेक वैकल्पिक प्रतिरूपों में से उस विकल्प को चुनना होता है। जिससे अपूर्ण प्रतिरूप पूरा हो सके।
प्रश्न 7. पहचान संकट क्या है?
उत्तर-पहचान संकट का तात्पर्य कुछ वैसे प्रकार के व्यक्तियों से जुड़ा होता है जिन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता है और उन्हें जीवन भर संस्थागत देखभाल की जरूरत पड़ती है। तीव्र मंदन और अति गंभीर मंदन वाले व्यक्ति को ही पहचान संकट की समस्या से जूझना पड़ता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति अपना जीवनयापन करने में अक्षम होते हैं और जीवन भर उनकी लगातार देखभाल करते रहने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 8.तनाव या दबाव का सामना करने के विभिन्न उपायों को लिखें।
उत्तर-दबावपूर्ण स्थितियों को सामना करने की उपायों के उपयोग में व्यक्तिगत भिन्नताएँ देखी जाती हैं। एडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित दबाव का सामना करने की तीन उपाय निम्नलिखित हैं
(i) कृत्य अभिविन्यस्त युक्ति-दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते है यह सब इसके अंतर्गत आते हैं।
(ii) संवेग अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत मन में आभा बनाए रखने के प्रयास तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं।
(ii) परिहार अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते है।
(iv) परिवार अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अन्तर्गत स्थिति को गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं। .
प्रश्न 9. व्यवहार चिकित्सा क्या है?
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा, जिसे व्यवहार परामर्श भी कहा जाता है। इस चिकित्सा का अधार अनुबंधन का नियम अथवा सिद्धांत होता है। इस चिकित्सा पद्धति की प्रमुख मान्यता यह है कि रोगी दोषपूर्ण समायोजन पैटर्न को सीख लेता है, जो स्पष्टतः किसी-न-किसी स्रोत से पुनर्वलित होकर संपोषित होते रहता है। फलतः इस तरह की चिकित्सा में चिकित्सक का उद्देश्य दोषपूर्ण समायोजन पैटर्न या अपअनुकूली समायोजन पैटर्न के जगह पर अनुकूली समायोजन पैर्टन को सीखला देना होता है।
प्रश्न 10. मानव व्यवहार पर शोरगुल के प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर-मानव व्यवहार पर शोर का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.। मानव शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की दुविधाओं से त्रस्त हो जाती है।
आत्मभाव में चिड़चिड़ापन, शब्दग्रहण की क्षमता में कमी, कार्य निष्पादन में विलम्ब तथा त्रुटियाँ, सीखने की अभिरूचि क्षीण, ध्यान में अवरोध, निर्णय
क्षमता में कमी आदि अवांछनीय लक्षणों का प्रत्यक्ष क्रियाशील शोर के प्रभाव के रूप में देखी जा सकती है।
शोर के कारण मनुष्य जल्दी थक जाता है, उसे स्वयं में ऊर्जा की कमी महसूस होने लगती है। क्रोध प्रकट करना, प्रिय एवं उपयोगी साधनों को भी पटक देना, चिल्लाना, कम सुनना आदि नकारात्मक लक्षण उभरने लगते हैं।
कार्य निष्पादन पर शोर के प्रभाव को उसकी तीन विशेषताएँ निर्धारित करती हैं, जिन्हें शोर की तीव्रता, भविष्यफकशीनयता तथा नियंत्रणीयता कहते हैं। मनुष्य पर शोर के प्रभावों पर किए गए क्रमबद्ध शोध प्रदर्शित करते हैं कि शोर के दबावपूर्ण प्रभाव केवल उसके तीव्र या मद्धिम होने से ही निर्धारित नहीं होते बल्कि इससे भी निर्धारित होते हैं कि व्यक्ति उसके प्रति किस सीख तक अनुकूलन करने में समर्थ हैं, निस्पादन किए जाने वाले कार्य की प्रति क्या
माडल है तथा क्या के संबंध में भविष्यकथन किया जा सकता है और क्या उसे नियंत्रित किया जा सकता।
शोर कभी-कभी सकारात्मक प्रभाव भी दिखाते हैं। चुनावी लहर में नारे की ध्वनि, भाषा के मध्य में तालियों की गड़गड़ाहट, पूजा-अर्चना के क्रम में जयकार आदि कर्ता में जोश भरने वाले माने जाते हैं।
प्रश्न 11. साक्षात्कार की अवस्थाएँ क्या हैं?
उत्तर-साक्षात्कार का उद्देश्य चाहे जो भी हो, इसके आधारभूत प्रारूप को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है। जिसे प्रारंभ, मुख्यभाग एवं समापन कहा जा सकता है।
(i) साक्षात्कार के प्रारंभ में दो संप्रेषकों के बीच सौहार्द्र स्थापित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि साक्षात्कार देनेवाला आराम की ‘स्थिति में आ जाए। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता बातचीत से शुरूआत करता है और ज्यादा। जिससे साक्षात्कार देनेवाला सहज स्थिति में आ जाए ।
(ii) साक्षात्कार का मुख्य भाग इस प्रक्रिया का केन्द्र है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता सूचना और प्रदत्त करने के उद्देश्य से प्रश्न पूछने का प्रयास करता है जिसके लिए साक्षात्कार का आयोजन किया गया है। प्रश्नों का उपयोग तथ्यों की जानकारी का मूल्यांकन करने के अलावा व्यक्तिपरक मूल्यांकन के लिए भी किया जाता है।
(iii) साक्षात्कार का समापन आगे लिए जानेवाले कदम पर चर्चा के साथ होना चाहिए। साक्षात्कार की समाप्ति के समय साक्षात्कारकर्ता को साथ होना चाहिए। साक्षात्कार की समाप्ति के समय साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार देनेवाले को भी प्रश्न पूछने या टिप्पणी करने का अवसर देना चाहिए ।
प्रश्न 12. मनोग्रसित तथा मनोबाध्यता में अंतर करें।
उत्तर-जो लोग मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार (Obessive Compulsive Disorder) से पीड़ित होते हैं वे कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नता को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं, यहाँ तक कि वे उनकी सामान्य गतिविधियों में भी बाधा पहुंचाते हैं। किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति व्यवहार (Obessive Behaviour) कहलाता है। इससे ग्रसित व्यक्ति अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है । किसी व्यवहार को बार-बार करने की आवश्यकता बाध्यता व्यवहार कहलाता है। कई तरह की बाध्यता में गिनना, आदेश देना, जाँचना, छूना और धोना सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 13. समूह के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-समूह के निम्नलिखित कार्य हैं-(i) यह व्यक्तियों का एक समूह है। (ii) समूह एक प्रकार की अभिप्रेरणा एवं लक्ष्य प्रदर्शित करता है। (iii) समूह निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने या समूह को किसी खतरे से दूर करने के लिए कार्य करते हैं।
प्रश्न 14. सांवेगिक रूप से बुद्धिमान व्यक्तियों की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-सविगिक रूप से बुद्धिमान व्यक्तियों की कुछ विशेषताएँ निम्न प्रकार की हो सकती है-(i) अपनी भावनाओं और संवेगों को जानना और उसके प्रति संवेदनशील रहना । (ii) दूसरे व्यक्तियों के विभिन्न संवेगों को उनकी शरीर भाषा, आवाज और स्वरक तथा आनन अभिव्यक्तियों पर ध्यान देते हुए जानना और उसके प्रति संवेदनशील रहना । (iii) अपने संवेगों को अपने विचारों से संबद्ध करना ताकि समस्या समाधान तथा निर्णय करते समय उन्हें ध्यान में रखा जा सके। (iv) अपने संवेगों के प्रकृति और तीव्रता के शक्तिशाली प्रभाव समझना। (v) अपने संवेगों और उनकी अभिव्यक्तियों को दूसरों से व्यवहार करते समय नियंत्रित करना ताकि शांति और सामंजस्य की प्राप्ति हो सके।
प्रश्न 15. अपसामान्य व्यवहार क्या है?
उत्तर-अपसामान्य व्यवहार वह व्यवहार है जो विसामान्य, कष्टप्रद, अपकियात्मक और दुःखद होता है। उन व्यवहारों को अपसामान्य समझा जाता है जो सामाजिक मानकों से विचलित होते हैं और जो उपयुक्त संवृद्धि एवं क्रियाशीलता में बाधक होते हैं।
प्रश्न 16. असामान्यता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-व्यवहार सामान्य हो अथवा असमान्य व्यक्ति अपने आंतरिक मनोविचारों एवं शक्तियों से प्रेरित होता है जिसके प्रति वह स्वयं चेतन रूप से अनभिज्ञ रहता है। मनोगतिक मॉडल में सर्वप्रथम फ्रॉयड ने कहा कि तीन केन्द्रिय शक्तियों के द्वारा व्यक्तित्व की संरचना निर्धारित होती है। मूल प्रवृत्तिक आवश्यकताएँ, अंतर्नाद तथा आवेद (इदम् या इद), तार्किक चिंतन (अहम्) तथा नैतिक चिनतन (पराहम्) । इस प्रकार फ्रॉयड ने माना है कि असामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होने वाले मानसिक द्वन्द्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसका संबंध सामान्यतः प्रारंभिक बाल्यावस्था या शैशवावस्था से प्रारंभ होता है।
प्रश्न 17.मानव व्यवहार पर जल-प्रदूषण के प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर-मानव व्यवहार पर जल-प्रदूषण के प्रभाव-जल प्रदूषण से तात्पर्य जल के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में ऐसा परिवर्तन से है कि उसके रूप, गंध और स्वाद से मानव के स्वास्थ्य और कृषि उद्योग एवं वाणिज्य को हानि पहुँचे, जल प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषित जल पीने से विभिन्न प्रकार के मानवीय रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जिनमें आँत का रोग, पीलिया, हैजा, टाइफाइड, अतिसार तथा पेचिस रोग प्रमुख हैं।
प्रश्न 18. शीलगुण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-व्यक्तित्व का निर्माण अनेक प्रकार के शीलगुणों से होता है। शीलगुण आपस में संयुक्त रूप से कार्य करते हैं, जिनसे व्यक्ति के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन को उचित दिशा एवं गति प्राप्त होती है। इसी कारण इसे सामान्य भाषा में व्यक्ति की विशेषताएँ भी कहा जाता है अब प्रश्न है कि शीलगुण से क्या अभिप्राय है ? मनोवैज्ञानिकों ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा है कि व्यक्तित्व की स्थायी विशेषताएँ जिनके कारण उनके व्यवहार में स्थिरता दिखाई पड़ती है, शीलगुण के नाम से जानी जाती है।
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