मानव भूगोल प्राकृतिक जगह (प्रकृति की दुनिया) तथा मानव के साथ हो रहे घटना और पृथ्वी में हो रहे पर्यावरण की दुर्दशा के बारे में जानने पढ़ने को ही मानव भूगोल कहते हैं !
मानव भूगोल की मदद से आज हम लोग अपनी जीवन को तरह तरह से खुश रख पाते हैं क्योंकि जब मानव भूगोल के बारे में नहीं जानते तो लोग पृथ्वी और पर्यावरण क्या है यह सब बातों की ज्ञान नहीं होता जिससे लोग अपना जरूरत सही से पूरा नहीं कर पाता और तरह तरह की प्राकृतिक संकट पर्यावरण से जुड़ी कोई भी समस्या का हल नहीं कर पाते, जिससे लोगों का जीवन काफी कठिन था
मानव भूगोल के अंतर्गत मनुष्य, मौसम सड़क, पहाड़, भूमिगत जमीन, कृषि, उद्योग, व्यापार, जनसंख्या, रेल मार्ग, आदि आता है
मानव भूगोल की महत्वपूर्ण परिभाषा
जर्मन वैज्ञानिक फ्रेडरिक रेटजेल (1844 -1904) ने अपनी किताब ‘एंथ्रोपॉजियोग्राफी” मैं बताया है कि मानव भूगोल पृथ्वी और मनुष्य के साथ-साथ पर्यावरण की संपूर्ण जानकारी प्राप्त की जाती है उन्होंने कहा है कि जमीन के अंदर क्या है पर्यावरण क्या होती है इनकी पूरी जानकारी बताया है
- मानव भूगोल का जनक किसे कहा जाता है
- मानव भूगोल का जनक फ्रेडरिक रेटजेल को कहा जाता है
मानव भूगोल का परिभाषा निम्नलिखित वैज्ञानिक ने दिया है
फ्रेडरिक रेटजेल इनको भूगोल का जनक कहा जाता है ऐलन सैम्पल,विडाल डी ला ब्लोस,इन्होने अपनी अपनी भाषा में दिया है
विभिन्न विद्वानों ने मानव भूगोल को परिभाषित किया है
- जीन बंस के अनुसार “सभी मानवीय क्रियाएँ जो भू-सतह पर विशिष्ट प्रकार के दृश्य प्रस्तुत करती हैं। मानव भूगोल की विषय-वस्तु हैं।”
डिमांजिया के अनुसार “मानव भूगोल मानव समूहों एवं मानव समाजों का अध्ययन उनके प्राकृतिक वातावरण से सम्बन्ध के सन्दर्भ में करता है”
कुमारी सेम्पल ने मानव भूगोल को चंचल मानव और अस्थायी पृथ्वी के परिवर्तनशील संबंध का अध्ययन कहा है।
ब्रश के अनुसार – मानवीय तथा सांस्कृतिक रचनाएँ जो कि मानव बुद्धि के अनुसार भौगोलिक यों से संघर्ष करता हुआ देखता है, मानव भूगोल का विषय है।
व्हाइट आनर द्वारा ‘भूगोल को मानव पारिस्थितिकी माना गया है जहाँ पृथ्वी की पृष्ठभूमि से मानव समाज का अध्ययन होता है।
(Name some sub-fields of human geography.)
उत्तर—मानव भूगोल की प्रकृति अत्यन्त अन्तर-विषयक है और यह सामाजिक विज्ञानों के सहयोगी विषयों के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है। ज्ञान के विस्तार के साथ नये उपक्षेत्रों विकास हुआ है। मानव भूगोल के उप-क्षेत्र हैं—व्यावहारवादी भूगोल, सामाजिक कल्याण का भूगोल, अवकाश का भूगोल, सांस्कृतिक भूगोल, लिंग भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल, निर्वाचन भूगोल, सैन्य भूगोल, संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल, उद्योग भूगोल, विपणन भूगोल, व्यापारिक भूगोल और पर्यटन भूगोल। ये सभी मानव उपक्षेत्र में शामिल है
मानव भूगोल के अंतर्गत मानव के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और जनांकिकीय विशेषताओं का अध्ययन होता है। इन विशेषताओं का अध्ययन विशेष रूप से क्रमशः समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और जनांकिकी में किया जाता है। इस प्रकार मानव भूगोल इन विषयों से संबंधित है।
मानव विकास के चार प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं
(i) समता : समता का आशव प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना है। लोगों को उपलब्ध अवसर लिंग. प्रजाति आय के भेदभाव के बिना समान होने चाहिए। यद्यपि ऐसा ज्यादातर तो नहीं होता फिर भी यह लगभग प्रत्येक समाज में घटित होता है।
(ii) सतत् पोषणीयता : इसका अर्थ है अवसरों की उपलब्धता में निरन्तरता। सत्तत् पोषणीयता मानव विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिले। संसाधनों का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि यह भावी पीढी के लिए अवसरों को कम करेगा।
(iii) उत्पादकता : उत्पादकता का अर्थ मानव श्रम उत्पादकता है। लोगों में क्षमताओं का नियं निर्माण करके ऐसी उत्पादकता में निरन्तर वृद्धि की जानी चाहिए। अन्ततः जन-समुदाय ही राष्ट्र कीके वास्तविक धन होते हैं। इस प्रकार उनके ज्ञान को बढ़ाने के प्रयास से उनकी कार्यक्षमता बढ़ेगी।
(iv) सशक्तिकरण : इसका तात्पर्य है अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्राप्त करना। ऐसी शक्ति बढ़ती हुई स्वतंत्रता और क्षमता से आती है। लोगों को सशक्त करने के लिए सुशासन द्वारा एवं लोकोन्मुखी नीतियों की आवश्यकता होती है।
संभववाद क्या है? (What is possibilism ?)
संभावना वाद एक विचारधरा जिसमे पृथ्वी और पर्यावरण के वो वास्तु जो भाविष्य में प्रयोग में लेन की सम्भावन हो उसे संभावना कहते है
संभववाद इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने के समर्थ है तथा वह प्रकृतिदत्त अनेक संभावनाओं का इच्छानुसार अपने लिए उपयोग कर सकता है। मानव एवं पर्यावरण के परस्पर संबंध में यह विचारधारा मानव केंद्रित है।
निश्चयवाद क्या है? (What is determinism ?)
निश्चयवाद, पर्यावरणीय निश्चयवाद या नियतिवाद एक पुरानी विचारधारा है। इसके अनुसार विकास की प्रारंभिक अवस्था में मानव प्राकृतिक वातावरण से अधिक प्रभावित हुआ और उन्होंने प्रकर्ति के आदेशों के अनसार अपने आपको ढाल लिया। इसका कारण यह है कि मानव के सामाजिक विकास की अवस्था आदिम थी और प्रौद्योगिकी का स्तर अत्यन्त निम्न था। उस अवस्था में मानव प्रकृति को सुनता था, उसकी प्रचंडता से भयभीत होता था और उसकी पूजा करता था। इसमें मनुष्य का स्थान गौण था।
मानव भूगोल में मानव पृथ्वी और पर्यावरण की अध्यन किया जाता है l
और
मानव विकास में मनुष्य जानवर और सजीव वस्तु का का अध्यन करतें है l
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